Friday 4 May 2012

लघुकथा : घटिया


‘कितनी घटिया जगह है ये, कितने घटिया लोग है यहाँ| how cheap?’ एक महेंगी गाड़ी से उतारते हुये दो लडिकियों ने कहा| एक हाथ में महंगा मोबाइल, कन्धे पर चमकता हुआ काला बैग, दूसरे हाथ में पीने के लिये एक शीतल पेय का केन, एक के सिर पर सुनहेरा चश्मा तो दूसरी की आँखों पर, कान में चमकती हुयी नये जमाने की उटपटांग डिजाइन वाली वालिया, पैरों में चमचमाते हुये ऊचे हील की सेंडल और अंग्रेजी में गिटपिट| दोनों ही मोर्डन कही जाने वाली भेषभूषा में थी| और ये शहर का एक पिछड़ा इलाका था, यहाँ रहने वाले ज्यादातर लोग या तो गरीब थे या मध्यमवर्गीय| मकान पक्के थे मगर यदि कोई वास्तुकार इन मकानों को देखे तो चक्कर खा के गिर पड़े| इक्का-दुक्का मकानों में गाये-भैसें| कुछ में तुलसी| लोगो का पहनावा सामान्य| इस जगह ऐसी गाडिया आती ही कहाँ थी और उसमे से भी जब ऐसी सजी-धजी लड़किया निकिली तो आस-पास के सभी लोग घूर-धुर के देखने लगे| और जब लड़कियों ने ये देखा तो बोल दिया,’ how cheap?’ और दोनों फिर से गिटार-पिटर करती हुई चल दी| मुश्किल से दस-बारह कदम ही चली थी कि उनमे से एक ने अपना शीतल पेय खत्म किया और केन को सड़क के किनारे फेक दिया| तभी पीछे से एक बुड्डी सी आवाज़ आई ‘बिटिया केन डस्ट्बीन में दालों, ऐसे रोड गन्दी मत करो|’ लड़की ने देखा एक साठ–बासठ साल की बूढी औरत ने उस से कहा| लड़की ने केन दुबारा उठाया और बूढी औरत के जाते ही रोड पर फेक कर कार में जा बैठी| और अपनी सहेली से फिर कहा चलो इस घटिया जगह से|          

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