Thursday 3 May 2012

कहानी : भीख



"ए दो रुपया दें" बुडिया ने कहा | "चल आगे" राज ने कहा |
"बेटा भगवान तेरा भला करेगा" बुडिया ने कहा |
"बोला न बुडिया चल आगे" राज कुछ और बिगड़ कर ने कहा |
"बेटा ऐसे नाराज़ नहीं होते, दो रूपया दे चाय पियुगी" बुडिया ने फिर कहा|
"एरे तू जाती है नहीं, आ जाते है मागंने भिखारी कंही के, चल जा कंही और जा के मांग" राज लगभग चीखते हुये कहा ने कहा और इतनी जोर से के आस पास के लोग उसे देखने लगे |
ठीक है बेटा, भगवान तेरी हर मुराद पूरी करे, तू बड़ा आदमी बने’ बुडिया ने डरते हुये कहा और जाने लगी |
राज सोचने लगा |
जिंदादिल और हँसमुख राज को वैसे कभी गुस्सा नहीं आता था| पर आज उसका दिमाग सुबह से ही खराब था| दो दिन पहले मुम्वई आया था नौकरी कि तलाश में | दो साल हुये पढाई पूरे किये | कोई काम नहीं मिला | ऐसा नहीं था की वों न कमाए तो उसका परिवार मर जाएगा, पिता की अच्छी नौकारी है, अपना घर है, कोई खास परेशानी नहीं | पर हर पिता की तरह राज के पिता का भी बस यही सपना है, की राज अपने पैरों पर खड़ा हो जाए, इसलिये उस पर कुछ ज्यादा दबाब डालते है| और यही हाल माँ का है वों हमेशा राज का साथ देती है, पर पिता के रोज रोज दिये जाने वाले तानों ने माँ को भी ऐसा कर दिया था की वों भी पिता की हां में हां मिलाने लगी थी और राज को जब चाहे डाट देती थी| लगभग सभी दोस्त कुछ न कुछ काम धंधा करने लगे थे | और अब तो हालत ये थी की राज के पास कोई नहीं था जिससे वों बात भी कर सके|
                              अभी चार दिन पहले राज के पिता के एक मिलने वालो ने बताया की उनकी कोई जान पहचान है मुम्वई में जहाँ राज को काम मिल सकता है| और राज आगया मुम्वई, वैसे ऐसा नहीं था की राज को आता जाता ही न था पर जहाँ साक्षात्कार था वहाँ बात न बन सकी, क्यों की काम कुछ अलग था और राज ने कुछ और पड़ा था| जब माँ और पिता को पता लगा की वहाँ भी कुछ काम नहीं मिला तो वों राज को फिर सुनाने लगे खरी खोटी| राज चुप रहा कुछ न बोल सका, बस अब तो उसे लगता था की सुनना उस नसीब बन गया है| जो है वों उस बेचारें बेरोजगार को पहले आपनी शौर गाथाएँ सुनाता फिर राज को उसकी नाकामयाबी पर भाषण|
                           बस इसी परेशानी के साथ राज स्टेशन पर बैठ कर अपनी गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था और वों भिखारन आ गई, अपनी कुंठा में राज उस पर चिल्ला उठा | पर जाते जाते जो उस भिख्रण ने बोला राज के दिल को छु गया| जब सभी उसे नाकारा और बेकाम समझकर उसपर चिल्लाते है तो उसे कैसा लगता है और बुडिया ने उसके डाटने के बाद भी उसे आशीर्वाद दिया| राज भर उठा| उसने आस पास देखा | बुडिया अब भी बहीं थी | राज के पास बैठे एक और यात्री से भीख मान रही थी | राज बुडिया के पास गया और बोला “ चाय पियोगी अम्मा “
भिखारन ने डरते सहमते हुये अपना सिर हां में हिलाया |
राज में भिखारन को चाय खरीद के दी |
भिखारन ने भी राज को विना कुछ बोले धीरे से हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया|
जिससे राज को जाना था वों गाड़ी आ चुकी थी| राज ने अपनी बर्थ पर सामान रखा| कम्बल निकाल कर सिर से पैर तक खुद को ढक लिया| आँखों में आसू लिये राज कब सो गया उसे भी पता न लगा|

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