Friday 27 April 2012

व्यंग कथा : मेरी प्रथम काव्य गोष्टी


दोस्तों, आज आपके सामने पेश है मेरी प्रथम काव्य गोष्टी की रिपोर्ट....
मेरे शहर के पास के एक कस्वे से बुलावा आया| बुलावा भेजा था वहाँ के एक साहित्यकार जी ने| सुबह फोन बजा, उठाया मैंने,
उधर से आवाज आई....”नमस्ते भाई कैसे हो”,
मैंने कहा, “बढिया ....”
साहित्यकार जी ने कहा,”आज शाम को आजाओ एक गोष्टी है”
मैंने कहा, “जी .. ”
साहित्यकार जी ने कहा,”सही शाम ७ बजे पहुच जाना ... ”
मैंने कहा, “जी .. ”
साहित्यकार जी ने कहा,”घर तो देखा है ... ”
मैंने कहा, “जी ”
साहित्यकार जी ने कहा,”फिर मिलते है शाम को ... ”
मैंने कहा, “बिलकुल .... ”
साहित्यकार जी ने कहा,”वों फलां फलां भी आ रहे है .. ”.
मैंने कहा, “अच्छा .. ”
साहित्यकार जी ने कहा,”उन्हें भी लेते आना ”
मैंने कहा, “जी ”
साहित्यकार जी ने कहा,”ठीक है ...रखु .. ”
मैंने कहा, “जी”
तो जानाब यहाँ नया नया रोग था, मन तो हिरणों से ऊची छलागें मारने लगा, आखें घड़ी घड़ी, घड़ी देखने लगी, चार पाँच उच्चकोटि की कविताएं, दो चार ग़ज़ल याद की गई, एक कुर्ता, एक घड़ी की व्यवस्था की गई, दाड़ी ऊड़ी बना बनू के, एकदम चकाचक|
पहुचे साहब कस्वे में , घड़ी देखी, ६:३० हुये थे, हमारे साथ जो फलां फलां थे, बोले,”देखो दोस्त ७:४५ से पहले मत जाना, नहीं तो कोई इज्जत नहीं रहेगी|”
मैंने कहा,”पर समय तो ७ बजे का है”
फलां फलां बोले,”उससे क्या,बेटा अब तुम साहित्यकार बनने जा रहे हो, और समय पर पहुचकर क्यों अपनी इम्पोट्स घटा रहे हो, चलते है मिया एक आध फुक्की-सुक्की हो जाये|”
मैंने कहा,”जी जैसा आप कहें|”
फलां फलां बोले,”तो चलो, चौरसिया की दुकान पर”
मैंने कहा,”जी”
तो जनाब, चौरसिया की दुकान पर फलां फलां कश लेते रहे और हम उनकी बातो का रस लेते रहे| फिर ७:३० पर आदेश हुआ, चलो अब चलते है और हम चल दिये उनके साथ |
फलां फलां के प्लान के अनुशार हम सही ७:४५ पर खड़े थे, साहित्यकार जी की चौखट पर, साहित्यकार जी, पूरी श्रद्दा से स्वागत को आतुर, पहुचते ही बोले, "अरे देर हो गई आप लोगो को"
फलां फलां बोले," इतना तो चलता है"
और दोनों हँस दिये, हम भी मुस्कुरा दिये
साहित्यकार जी बोले, "चलिए अंदर चलिए"
और साहब चल दिये हम अंदर, अंदर था एक गुफा नुमा कमरा, कमरे में एक टेवल पर सरस्वती माता विराजमान थी, और फर्श पर चार अन्य मित्रगण, दो मित्र अपने मोबाइल पर आपस में बिलुटूथ पर कुछ आदान-प्रदान कर रहे थे, और जो दो और थे वों, किसी सांसद की माँ, बहनों की सेवा कर रहे थे|
पहुचते ही साहित्यकार जी ने परिचय कराया, और फिर सब लग गये अपने कामो में, मैं और फलां फलां एक किताब को खोलकर ग़ज़लें पड़ने लगे| इतने उस गुफा की मांद में दो अन्य का प्रवेश हुआ, साहित्यकार जी ने परिचय कराया और सरस्वती माता के पास जाकर बोले
"दोस्तों आप जानते ही है, आज हम यहाँ क्यू उपस्तिथ है"
उनका इतना कहना ही था की बत्ती गुल यानि की बिजली गई| इसके बाद सब ने बारी बारी से बिजली वालो को याद किया, और हिन्दी की सहायक क्रियाओं से उन्हें नवाज़ा| और फिर साहित्यकार जी को भी लगे हाथ दो चार सुना डाली| साहित्यकार जी भी कम तो थे नहीं उन्होंने भी सहायक क्रियाओं के अपने ज्ञान का उदाहरण प्रस्तुत किया और मैंने सोचा भाई क्या फायदा हुआ चकाचक आने का| फिर एक दीपक और कुछ मोमबत्तियाँ मंगाई गई और उस केंडल लाईट माहौल में गोष्टी को प्रारम्भ किया गया|  साहित्यकार जी फिर बोले, " मैं आज की गोष्टी का फलां फलां को आमंत्रित करूगाँ के वे आये, और और दीप प्रज्जोलन कर गोष्टी का आरम्भ करे|”
फलां फलां बोले,” दीप तो पहले से ही प्रज्जोलित है साहित्यकार जी|” साहित्यकार जी फिर बोले, “ मेरा मतलब माता के चरणों के समक्ष दीप प्रज्जोलन से था|” फलां फलां बोले,” वों तो ठीक है, पर मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि को और बुलाइए|”
हाँ, साहित्यकार जी कुछ सोचकर बोले,” मैं श्री मित्र नंबर एक से गुजारिश करूगां कि वे भी दीप प्रज्जोलन में सहियोग करें और मुख्य अतिथि का पद स्वीकार करें|”
मित्र नंबर एक तत्काल ही बोले, “साहित्यकार जी  अरे हम काहेके अतिथि हम तो आप के घर के सदस्य है, और आप कृपा कर श्री मित्र नंबर दो को मुख्य अतिथि बनाये|” साहित्यकार जी फिर बोले, “ ठीक है मैं श्री मित्र नंबर दो से अनुरोध करूगां कि ....” साहित्यकार जी की बात पूरी भी न हो पाई थी की श्री मित्र नंबर दो बोल पड़े,” यानी की साहित्यकार जी आप मुझे अपने घर का सदस्य नहीं मानते|”
साहित्यकार जी फिर बोले,” अरे मानता क्यूँ नहीं पर गोष्टी ...”
साहित्यकार जी की बात फिर आधूरी रह गई, श्री मित्र नंबर दो फिर बोले,” अच्छा अच्छा ठीक है पर मित्र नंबर एक यदि विशिष्ट अतिथि के रूप में यदि साथ आये|” इतना कहकर वे उठे और साथ में मित्र नंबर एक भी उठे, और हँसते हुये माता के समक्ष जा खड़े हुये, जैसे तैसे दीप प्रज्जोलन हुआ|
फिर साहित्यकार जी बोले, “मैं संचालन के लिये श्री मित्र नंबर तीन को आमंत्रित करता हूँ|” मित्र नंबर तीन अपनी जगह पर बैठे बैठे बोले,” साहित्यकार जी सरस्वती वंदना के लिये किसे आमंत्रित करूँ??”
साहित्यकार जी बोले, “यार किसी को भी आमंत्रित कर लों|”
इतने में फलां फलां बोले, “ यार संचालन तुम कर रहे हो या साहित्यकार जी??” मित्र नंबर तीन बोले, “ ठीक है .....मैं मित्र नंबर चार से कहुगां की वे सरस्वती वंदना करें|” इस पर मित्र नंबर चार ने बिगडते हुये कहा, “क्या यार तुम भी संचालन तो आता नहीं, कहुगां मतलब क्या, अनुरोध करुगा|”
मित्र नंबर तीन बोले, “ हां हां बही, अनुरोध करुगा|”
मित्र नंबर चार ने नानुकर करने की बाद एक सरस्वती वंदना गाई, सब ने तालियाँ बजाई, और फिर संचालक महोदय बोले,’’ साहित्यकार जी अब रचना पाठ के लिये किसे आमंत्रित करूँ”
फलां फलां फिर बीच में बोल पड़े,” यार फिर बही बात, संचालन तुम कर रहे हो या साहित्यकार जी???”
मित्र नंबर तीन बोले, “ ठीक है मैं मित्र नंबर पाँच से अनुरोध करूगां (ये शब्द उन्होंने थोड़ा जोर देकर मित्र नंबर चार की और देखते हुये कहे) कि वे प्रथम काव्य पाठ करें|”
मित्र नंबर पाँच (थोड़ा चौककर) बोले.” यार तुम भी न बस, टेम तो देखते नहीं, अरे में ये फ़ाइल ट्रांसफर कर रहा हूँ, ये तो हो जाने देते|”
इतने में साहित्यकार जी बोले, “ क्या यार तुम साले, फ़ाइल ट्रांसफर करने आये हो या काव्य पाठ करने??”
मित्र नंबर पाँच बोले,” चलो मैं काव्य पाठ कर देता हूँ, फ़ाइल ट्रांसफर तो होती रहेगी, बिलुटूथ का ये ही तो फायदा है””
एकदम से मित्र नंबर छ: बोल पड़े,” यार तुम्हारे मोबाइल में बिलुटूथ है, कौन सा मोबाइल है, कितने का लिया??”
मित्र नंबर पाँच बोले,”मेरे साले का है, एन सीरीज का”
मित्र नंबर छ: बोले,”बताना जरा“
मित्र नंबर पाँच बोले,” अभी डाटा सेंड हो रहा है| “
फलां फलां ने बीच में टोका,”यार हम काव्य गोष्टी के लिये आये है मोबाइल देखने नहीं|”
मित्र नंबर पाँच ने फिर कुछ ना कहा और वीर रस की दो कविताएं पढ़ डाली, संचालक महोदय को देखा और मोबाइल हाथ में लिया|
संचालक महोदय ने धन्यावाद दिया, और बोले,” अब मैं मित्र नंबर एक से अनुरोध करूगां की वे काव्य पाठ करें|”
फिर क्या था संचालक महोदय अनुरोध करते रहे और काव्य पाठ होते रहे, और आब बारी मेरी थी|
मैंने जैसे ही मुह खोला बिजली आगयी| सब एक साथ बोले वाह वाह, तभी साहित्यकार जी बोले, “कुछ कहने तो दो बालक को, वाह वाह फिर करना”
इस पर फलां फलां बोले, “साहित्यकार जी आप टेसू के टेसू रहोगे, अरे बिजली आई है, जश्न तो बनता है|”
इस पर संचालक महोदय ने तुर्रा छोड़ा,” साब ऐसा जश्न तो हम दिन में दस बार बनाते है”
इस पर सब फिर बोले,”वाह वाह”
फलां फलां ने मुझ कहा, “तुम चालु करो यार मुझे भूख लगी है”
मित्र नंबर एक उचके, “ कविता की??”
फलां फलां फिर बोले,” यार टीम चुप रहो, उलटी बात ही करोगें|” फिर मेरी ओर देखते हुये “ तुम बोलो यार|”
मैंने भी जल्दी से काव्य पाठ चालु किया कि और कोई कुछ न बोल पाए| काव्य पाठ खत्म हुआ ही था की साहित्यकार जी ने आदेश दिया “पहले पेट पूजा फिर काम दूजा” तब तक चाय और पकोड़े आ चुके थे, सभी ने नाश्ते का लुफ्त उठाया और फिर  संचालक महोदय तन के बैठ गये एक डकार ली और बोले,” अब मैं आमंत्रित करुगा श्री फलां फलां को”
जब श्री फलां फलां पर सब की नज़रे पड़ी तो फलां फलां ऊँघ रहे थे
संचालक महोदय फिर जोर से बोले,” फलां फलां जी, अरे सुन रहे हो??”
फलां फलां झटके से उठे और बोले, “ वाह वाह”
संचालक महोदय बोले, “ वाह वाह बाद में करना फिर रचनाएँ सुनाओ”
फलां फलां ने कहा, “ठीक है|” अभी फलां फलां पहला मिसरा ही पढ़ रहे थे कि मित्र
नंबर छ: बोले,” यार ये तो राना जी का है”
फलां फलां बोले,” सुन तो लों यार”
मित्र नंबर छ: बोले,” तो अपना सुनाइये”
फलां फलां बिगड़ गये, ”नहीं सुनाना वें, करले क्या करेगा, साहित्यकार जी अबके यदि ये आया तो मुझे मत बुलाना, गोष्टी खत्म भाई चलो सब अपने अपने घर को”
साहित्यकार जी बोले, “अरे नाराज ना होइए|” फिर मित्र नंबर छ: की ओर देखते हुये बोले, “तुम चुप रहो यार|”
मित्र नंबर छ: ने आव देखा ना ताव और उठे और चल दिये गुफा से उनके पीछे पीछे मित्र नंबर चार और पाँच भी ये कहते हुये निकल लिये, “ अरे सुनों यार, बात तो सुनों ...”
फलां फलां जो पहले से गुस्से में थे बोले,” सारा मूड खराब कर दिया दिया” और फिर सहायक क्रियायों का इस्तमाल किया और उठ खड़े हुये और मुझसे बोले चलो यार तुम यहाँ आना ही नहीं चाहिये था, जनाब बहुत रोका सबने पर वे ना माने और काव्य गोष्टी का समापन हो य गया|
मैं और फलां फलां, अभी थोड़ी दूर तक ही आये थे के मिल गये मित्र नंबर छ;, चार और पाँच,  मित्र नंबर छ; फलां फलां से बोले, “चले चौरसिया की दुकान पर” और लगाया एक ठहाका सब ने| और निकल पढ़े सब के सब  चौरसिया की दुकान पर कश का रस लेने”
~ ©अमितेष जैन

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